मैं-जी हां आचार्य जी (सभी उन्हें आचार्य जी कह कर बुला रहे थे)
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
बिजनेस न्यूजट्रंप ऐसा कौन सा व्यापार करना चाहते हैं जिसके लिए उन्होंने शहबाज शरीफ की जगह असीम मुनीर को दावत दी?
ऐसा नहीं है, आप कर्म ही वो करते हो जो आपके भाग्य में लिखा होता है, इसका आपको पता नहीं चलता,आपको पता भी नहीं होता कि अगले एक घंटे में आप क्या सोचोगे, और आप ने आज जो सोचा है उसका नतीजा कैसा होगा,आप पहली बार कर्म करके असफल हो जाओगे या दस बार कर्म करने पर कामयाब होगे, ये भाग्य ही निर्धारित करता है,क्या आपको मालूम है कि दो महीन बाद आप कौन सा कर्म करोगे या आपको कौन सा कर्म करना पडेगा, कोई अचानक आप को मिल जाएगा जो या तो आपकी ज़िन्दगी बदल देगा या नुक्सान कर देगा,कितनी बार हम ये सोचते हैं कि ओहो ये बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है, कर्म अपने आप में सही है, लेकिन आप कर्म भी उतना ही कर पाते हो जितना आपने भाग्य में लिखा है, जैसे आप रोटी उतनी ही खा पाते हो जितना भगवान् ने आप को पेट दे कर भेजा है.
लक भी उन्ही में से एक है, पर अगर कोई चीज समझाई नहीं जा सकती तो इसका ये मतलब नहीं है कि वो है ही नहीं.
हर साल लाखों युवा हीरो बनाने मुंबई जाते हैं, पर क्या हेमशा वही हीरो बनता है जो सबसे website मेहनती होता है….
ये मंजिलें तय करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत और योजनाबद्ध तरीके से काम करना पड़ा
हम ये श्लोक पढ़कर एग्जाम पास कर लेते हैं
काम्बली और तेंदुलकर का उदहारण अक्सर दिया जाता है
जीवन में लक्ष्य का होना ज़रूरी क्यों है ?
भाग्य ही सब कुछ देता है ऐसा पुरुषार्थहीन लोग ही बोलते हैं। इसलिए भाग्य की उपेक्षा कर अपनी शक्ति पर भरोसा रखना चाहिए। दूसरी ओर ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं जो मानते हैं कि भाग्य से ही सब कुछ होता है – भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम (अर्थात भाग्य ही हर जगह फल देता है, न कि विद्या और पौरुष)।
प्रत्येक दया का कार्य, सत्य बोलना, दूसरों की मदद करना हमारे रिश्तों की गुणवत्ता में सुधार करता है क्योंकि हम एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं। नकारात्मक प्रतिक्रिया या चेतावनियों जैसे कि असत्य होना, असावधान होना, या बलपूर्वक होना रिश्तों को नष्ट करता है और इसके परिणामस्वरूप विरोध और बहिष्कार होता है।
आचार्य जी-नहीं, न ज्योतिष सीखना समय की बर्बादी है और न ही उसका लाभ उठाना। मगर हमें यह जानना अति आवश्यक है कि हम कर्म और भाग्य दोनों के महत्त्व को समझें और जान सकें, वरना ज्योतिष सीख कर भी तुम ऐसे सवालों का जवाब किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं दे पाओगे जो इसमें फर्क समझना चाहता है।
अंत में, अब अगर मेरे विचार आपको तार्किक लगें व् कर्म की ओर प्रेरित करें तो आप इसे क्या कहेंगे … “ मेरा कर्म या मेरा भाग्य “ फैसला आप पर है